Friday 21 July 2023

ग़ज़ल -88-जलने वाली बस्ती के दुख का अंदाज़ लगा कर देखो-उड़ान *

 

नई ग़ज़ल –सतपाल ख़याल

 

जलने वाली बस्ती के  दुख का अंदाज़  लगा  कर देखो
पल भर को तुम अपने घर का हिस्सा एक जला कर देखो


बेटी की अज़मत जाने का  दुःख पूछो तुम बाप से जाकर 

उसकी जगह पे ख़ुद को रख कर,  उसका बोझ उठा कर देखो


जिस्म के साथ जले हैं सारे ,  दुख, तकलीफ़ें, सपने,  खुशियाँ

क्या क्या  राख़ हुआ  है इसमें , अब तुम  राख़  उठा कर देखो


 
हम  चाय की  चुस्की  लेकर  पढ़  लेते हैं  मौत की ख़बरें
जिसके  घर मातम  पसरा हो ,  उसके घर  में जा कर देखो


 
अदब,  आदाब,  सलाम,  सलीक़े,  रक्खो इन सब को  कोने में
शातिर  है  कम ज़र्फ़  ज़माना , इसको  आँख  उठा कर  देखो


 
घर का मतलब क्या है “ख़याल” और  बेघर  होना क्या होता है

जिस बस्ती में  घर उजड़े हों ,  उस बस्ती में जा कर देखो

 

 

Friday 14 July 2023

ग़ज़ल-86-तिजारत करते हैं सारे, इबादत कौन करता है-उड़ान *

तिजारत करते हैं सारे, इबादत कौन करता है
ज़रुरत खत्म होने पर मुहब्बत कौन करता है
 
सहूलत है बहुत इनमें, बहुत आराम है इनमें
    कि पिंजरा तोड़कर उड़ने की हिम्मत कौन करता है
 
ग़लत को भी गलत कहने की अब हिम्मत नहीं हममें
कि सब डरते हैं हाकिम से बगाबत कौन करता है
 
यहाँ सब लोग हैं मसरूफ़ बस रोटी कमाने में
हैं सब हर हाल में राज़ी ,शिकायत कौन करता है
 
 जिन्हें इन्साफ करना है वो शामिल हैं गुनाहों में
शिकायत कौन सुनता है ,शिकायत कौन करता है
 
कई गांठें हैं समझौतों की इन रिश्तों के धागों में
ज़रूरत से ही रिश्ता है ,मुहब्बत कौन करता है
 
कभी औलाद मांगी है , कभी दौलत , कभी रूतबा,
ख़ुदा से इश्क़ किसको है ,इबादत कौन करता है
 
बड़े दल-बल से चलता है, यहाँ पर झूठ का लश्कर
“ख़याल” अब सच की दुनिया में हिमायत कौन करता है


उधर तुम हो , ख़ुशी है

  उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है   ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है   नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है   मुसीबत है , बुला ले ये ...