Wednesday 20 December 2023

Punjabi Ghazal- ਨਹਿਰ ਦੇ ਕੰਢੇ ਕਿੱਕਰ ਥੱਲੇ ਬੈਠ ਗਏ


ਤਪਦੀ ਰਾਹ ਤੇ  ਕੱਲ੍ਹੇ ਚੱਲੇ , ਬੈਠ ਗਏ 
ਯਾਦ ਤੇਰੀ ਦੇ ਰੁੱਖੜੇ  ਥੱਲੇ , ਬੈਠ ਗਏ 

ਕੀ -ਕੀ ਆਇਆ ਯਾਦ ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਕੀ ਦੱਸਾਂ 
ਤੇਰੇ  ਸ਼ਹਿਰ ਚ ਜਾਕੇ ਕੱਲੇ ਬੈਠ ਗਏ 

ਮੁੜਕੇ ਸਫ਼ਰ ਪਿਛਾਂਹ ਨੂੰ ਕੀਤਾ ਕੀ ਦੱਸੀਏ 
ਆਕੇ ਉੱਥੇ ,  ਜਿੱਥੋਂ ਚੱਲੇ , ਬੈਠ ਗਏ 

 ਚੋਰ - ਉਚੱਕੇ ਪਹੁੰਚੇ  ਉੱਚੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ਤੇ 
ਮੇਰੇ ਵਰਗੇ ਕਿੰਨੇ ਝੱਲੇ ,  ਬੈਠ ਗਏ 

ਪਿਆਰ -ਮੁਹੱਬਤ ਰਾਸ ਆਂਦੀ ਹੈ  ਕਿਸ ਨੂੰ ਦੱਸ 
ਜਿਸ -ਜਿਸ ਲੱਗੇ ਰੋਗ ਅਵੱਲੇ,   ਬੈਠ ਗਏ 

ਕੀ ਕੀਤਾ ਈ ਯਾਦ ਤੁਸਾਂ , ਅੱਖ ਗਿੱਲੀ ਕਿਓਂ 
ਚੱਲਦੇ -ਚੱਲਦੇ ਕਿਹੜੀ ਗੱਲੇ  ਬੈਠ ਗਏ

ਇੱਕ ਦੇ ਹੋਕੇ ਸਾਰੀ ਉੱਮਰ ਗੁਜ਼ਾਰ ਲਈ 
ਕੂਕਰ ਬਣਕੇ ਬਸ ਦਰ ਮੱਲੇ ,  ਬੈਠ ਗਏ 

ਔਖੀ ਕਾਰ ਮੁਹੱਬਤ ਵਾਲੀ , ਲੰਮੀਂ ਰਾਹ 
ਔਖੇ -ਸੌਖੇ ਹੋਕੇ ਚੱਲੇ , ਬੈਠ ਗਏ

बैठे -बैठे सोच रहे हैं क्या -क्या कुछ- New

 


बैठे -बैठे   सोच रहे   हैं  क्या -क्या कुछ

दुनिया में हम देख चुके हैं  क्या -क्या कुछ 


प्यार, मोहब्बत ,रिश्ते -नाते और वफ़ा 

सच ,खुद्दारी , नेकी , 

हम जैसों को  रोग  लगे हैं क्या क्या  कुछ 


बचपन  ,यौवन  , पीरी ,  मरघट 

हैरत से हम देख रहे हैं क्या -क्या कुछ 


बेटा , भाई , मालिक ,नौकर या शौहर 

नाटक में हम रोज़  बने  हैं क्या -क्या कुछ


जिस्म ,ईमान की इस मंडी में सब कुछ है 

देखो तो सब बेच रहे हैं क्या क्या कुछ 


करते हैं अब कूच सराये- फ़ानी से 

इन  आंखों से  देख चले हैं क्या -क्या कुछ 


रेत ,समुन्द्र ,फूल ,बगीचे ,दफ़तर ,घर

गजलों में  अहसास  बने हैं क्या -क्या कुछ 


कल  कुछ  अच्छा होने की  उम्मीद "ख़याल"

इस  उम्मीद से ख़्वाब सजे हैं क्या क्या  कुछ 

Monday 18 December 2023

मैं आँखें देख कर हर शख़्स को पहचान सकता हूँ- उड़ान

 


 

मैं आँखें  देख कर हर  शख़्स  को  पहचान लेता  हूँ

बिना  जाने  ही अकसर  मैं  बहुत  कुछ  जान लेता  हूँ

 

वो कुछ उतरा  हुआ  चहरा,  वो  कुछ सहमी हुई  आँखें
मुहब्बत करने वालों को तो मैं पहचान लेता हूँ 

 

तजुर्बों ने सिखाई है मुझे तरकीब कि मैं अब

मुसीबत सर उठाये तो मैं सीना तान लेता हूँ 

 

 

Friday 15 December 2023

आसमानों से उतारी धूप को- उड़ान *




आसमानों से उतारी धूप को
ले गये साए हमारी धूप को 

बुझ गया दिन शाम की इक फूँक से
पी गयी कालिख़ बेचारी धूप को

 
मौसमों ने की सियासत देखिए
खा गया कोहरा हमारी धूप को
 
छीन कर सूरज गरीबों से जनाब 
कर दिया किश्तों में जारी धूप को 


हर सुबह सूरज उठाकर चल पड़े
पीठ पर लादा है भारी धूप को
 
अपने हिस्से का उजाला बेच कर
हमने लौटाया उधारी धूप को
 
अपने सूरज खूंटियों पर टांग दो
पहनो मग़रिब की उतारी धूप को
 
बर्फ़ जब जमने लगी अहसास की
फिर बनाया हमनें आरी धूप को


 
 
 
 
 
 
 

उधर तुम हो , ख़ुशी है

  उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है   ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है   नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है   मुसीबत है , बुला ले ये ...