बैठे -बैठे सोच रहे हैं क्या -क्या कुछ
दुनिया में हम देख चुके हैं क्या -क्या कुछ
प्यार, मोहब्बत ,रिश्ते -नाते और वफ़ा
सच ,खुद्दारी , नेकी ,
हम जैसों को रोग लगे हैं क्या क्या कुछ
बचपन ,यौवन , पीरी , मरघट
हैरत से हम देख रहे हैं क्या -क्या कुछ
बेटा , भाई , मालिक ,नौकर या शौहर
नाटक में हम रोज़ बने हैं क्या -क्या कुछ
जिस्म ,ईमान की इस मंडी में सब कुछ है
देखो तो सब बेच रहे हैं क्या क्या कुछ
करते हैं अब कूच सराये- फ़ानी से
इन आंखों से देख चले हैं क्या -क्या कुछ
रेत ,समुन्द्र ,फूल ,बगीचे ,दफ़तर ,घर
गजलों में अहसास बने हैं क्या -क्या कुछ
कल कुछ अच्छा होने की उम्मीद "ख़याल"
इस उम्मीद से ख़्वाब सजे हैं क्या क्या कुछ
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