मुआमला दिलों का ये बड़ा ही पेचदार है
कि जिसने ग़म दिए हमारा वो ही ग़म-गुसार है
न मंज़िलों की है ख़बर न दूरियों का है पता
भटक रहे हैं कब से हम ये कैसी रहगुज़ार है
किसी ने भेजा आ गये ,बुला लिया चले गए
कि मौत हो या ज़िंदगी , किसी का इख़्तियार है ?
ये रौनकें , ये महिफ़िलें , ये मेले इस जहान के
ए ज़िंदगी , ख़ुदा का भी तुझी से कारोबार है
उसी ने डाले मुश्किलों मे मेरे जान-ओ-दिल मगर
उसी पे जाँ निसार है , उसी पे दिल निसार है
तुमीं को हमने पा लिया , तुमीं को हमने खो दिया
तू ही हमारी जीत है, तू ही हमारी हार है