Wednesday 13 March 2024

ये रौनकें , ये महिफ़िलें , ये मेले इस जहान के-दस्तक


मुआमला  दिलों का ये  बड़ा ही पेचदार है 
कि जिसने ग़म दिए हमारा वो ही ग़म-गुसार है 

न मंज़िलों की है ख़बर न दूरियों का है पता 
भटक रहे हैं कब से हम ये कैसी रहगुज़ार है 


किसी ने भेजा आ गये ,बुला लिया चले गए 
कि मौत हो या ज़िंदगी , किसी का इख़्तियार है ?

ये रौनकें , ये महिफ़िलें , ये मेले इस जहान के
ए ज़िंदगी , ख़ुदा का भी तुझी से कारोबार है


उसी ने डाले मुश्किलों मे मेरे जान-ओ-दिल मगर
उसी पे जाँ निसार है , उसी पे दिल निसार है


तुमीं को हमने पा लिया , तुमीं को हमने खो दिया
तू ही हमारी जीत है, तू ही हमारी हार है

Tuesday 12 March 2024

सलीबों को उठाना आ गया है*

सलीबों को उठाना आ गया है
मुझे जीवन बिताना आ गया है  

घड़े शहरों  में भी बिकने लगे हैं 
ज़माना फिर पुराना आ गया है 

चलो अच्छा नहीं आये हैं गिरधर 
हमें परबत उठाना आ गया है 

अलग कर  दो मुझे अब कारवाँ से 
रुको , मेरा ठिकाना आ गया है 

चढ़ा है रंग दुनिया का ब-ख़ूबी
तुम्हें भी  दिल दुखाना आ गया है  

शिकायत ही नहीं करता किसी से 
मुझे  रिश्ता निभाना आ गया है

ज़रा मुड़ कर सफ़र को याद कर लो
ए दरियाओ मुहाना आ गया  

पिता ख़ुश है कि बेटे को "ख़याल" अब 
दो टुक रोटी कमाना आ गया है 


इस जमीं में है , आसमान में हैं *


इस जमीं में है , आसमान में हैं
गर ख़ुदा है तो किस जहान में है

मुश्किलों में है तेरे बंदे, ख़ुदा
उनकी मुश्किल तुम्हारे ध्यान में है ?

बड़बड़ाता है मुझ में रह-रह कर
क्या कोई और इस मकान में है

क्यों सितारों की आंखें नम -नम हैं
चाँद तो अब भी आसमान में है

ईंट गारे की फ़िक्र क्या करना
घर तो आख़िर तेरा मसान में है

देख बिखरा है घर सम्भाल इसे
तुमको रहना इसी मकान  में है

Friday 8 March 2024

तेरे बीमार रहने से ही ये बाज़ार चलता है*

तेरे बीमार रहने से ही ये बाज़ार चलता है
दवाऐं बेचने वालों का कारोबार चलता है

रखा जाता है हमको  भूख बीमारी के साए में 
कुछ ऐसे तौर से इस  देश में व्यापार चलता है


वही लिक्खा है अख़बारों  ने जो सरकार ने चाहा 
सियासत के इशारों पर ही तो  अख़बार  चलता है


सजाएं भी आवार्डों की तरह मरने पे मिलती हैं 
कुछ ऐसी चाल से इन्साफ का दरबार चलता है 


सियासत काठ की हांडी  जो बारंबार चढ़ जाए 
ये वो सिक्का है , जो खोटा है , जो हर-बार चलता है 


कमाता है कोई इतना के पड़पोते भी पल जाएं 
कमाते हैं कई ता-उम्र बस घर -बार चलता है 


लोग आते हैं , तडपते हैं ,चले जाते हैं फिर इक दिन 
न जाने किसके कहने पर तेरा संसार चलता है 


चढ़ते-चढ़ते उतर गया पानी*

 


चढ़ते-चढ़ते उतर गया पानी
बनके आंसू बिखर गया पानी  

पानियों को भी काट दे ये कटार
इस सियासत से डर गया पानी

एक सहमी हुई सी मछली है
कैसे पांनी से डर गया पानी

जल रहे घर की बात आई तो
फिर मदद से मुकर गया पानी

दूब की नोक पे हो शबनम ज्यूं
त्यूँ पलक पे ठहर गया पानी

आंख तेरी ज़रा सी नम जो हुई

मेरी आँखों में भर गया पानी

जब से बिछड़ा "ख़याल" सागर से
देख फिर दर -ब -दर गया पानी

उधर तुम हो , ख़ुशी है

  उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है   ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है   नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है   मुसीबत है , बुला ले ये ...