Friday 21 April 2023

ग़ज़ल -74-जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़-उड़ान*

 

जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़
ख़ुद ही तूफ़ाँ ले गया कश्ती को साहिल की तरफ़

बिजलियाँ चमकीं तो हमको रास्ता दिखने लगा
हम अँधेरे में बढ़े ऐसे भी मंज़िल की तरफ़्

क्या जुनूँ पाला है लहरों ने अजब पूछो इन्हें
क्यों चली हैं शौक़ से मिटने ये साहिल की तरफ़

गर ज़बां होती लहू की बोलता हक़ में मेरे

हो गये सब बोलने वाले तो क़ातिल की तरफ़  


है अँधेरी कोठरी मे एक छोटा सा चराग़

आँख अपनी बंद करके देख इस दिल की तरफ़

 

 मैं सिवा उसके किसी को देख न पाया “ख़याल”

                  था मेरा तो ध्यान उस गोटे की झिलमिल की तरफ़

 

 

 

Thursday 20 April 2023

ग़ज़ल -73- एक विरहन की मन –अगन जैसी-उड़ान *

 

एक विरहन की मन –अगन जैसी

रात वीरान सी है  वन जैसी  

मैं हमेशा उदास रहता हूँ

साथ रहती है इक घुटन जैसी 

 

किसको परवाह ज़िंदगी तेरी

तू है टूटे हुए बटन जैसी

 

ज़िंदगी क्या कहूँ कि कैसी है

तेरे लहज़े की इस चुभन जैसी

    

तेरे भेजे  गुलाब की ख़ुशबू

तेरे  महके हुए बदन जैसी

 

जीते रहने की इक ललक सी है

तेरे रंगीन पैरहन जैसी

 

हू-ब-हू शाम मुझको लगती है

मेरे उलझे उदास मन जैसी

 

मन तो सच्चा है जानकी की तरह

और ख्वाहिश किसी हिरन जैसी

 

दिल में रह –रह के उठ रही है ख़याल

चूर इक ख़्वाब की चुभन जैसी

 

 


Tuesday 18 April 2023

ग़ज़ल -72-जो लेकर लौ चले थे वो कहां हैं-उड़ान *

 
जो लेकर लौ चले थे वो कहां हैं
जो कल सच कह रहे थे वो कहां हैं 

दियों के काफ़िले थे वो कहां हैं ?
 
उजालों की हिफ़ाज़त करने वालो
दिए जो जल रहे थे वो कहां हैं
 
वो किन झीलों पे बरसे हैं बताओ
जो कल बादल उड़े थे वो कहां हैं
 
हमारी प्यास ने पत्थर निचोड़े
कुएँ जो नक़्शे पे थे वो कहां हैं
 
ए पानी बेचने वालो बताओ
जो राहों में घड़े थे वो कहां हैं
 
लहू के लाल धब्बे सबने देखे
जो पत्थर बांटते थे वो कहाँ हैं

 हवा में तैरती हिंसा की खबरें
कबूतर जो उड़े थे वो कहां हैं

ख़यालअब खाइयां है नफ़रतों की
कि पुल जो जोड़ते थे वो कहां है


Saturday 8 April 2023

ग़ज़ल -71-ख़ुशी में हो या हो ग़म में गुज़र तो होती है-उड़ान*

ख़ुशी में हो या हो ग़म में गुज़र तो होती है

ये उम्र कैसे न कैसे बसर तो होती है    

 

मैं सह रहा हूँ यही सोच कर के ग़म  सारे

हो रात कितनी भी लम्बी सहर तो होती है

 

कसक सी है ये मुहब्बत की एक-तरफ़ा सी

उधर की किसको ख़बर है , इधर तो होती है

 

हो राबता न अगर क्या, कि सिलसिला था कभी

मिलें भले न कभी हम , ख़बर तो होती है

 

बड़े यकीं से यहां लोग झूठ बोले “ख़याल”

बयान करती है सच को  नज़र तो होती है

 

 

 

 


Friday 7 April 2023

ग़ज़ल-70-शेरों में सब आंसू मेरे ढल जाते हैं-उड़ान*

शेरों  में सब आंसू मेरे ढल जाते हैं
पानी से ही कितने दीपक जल जाते हैं
 
किसने जंगली पौधों की सींचा है जाकर
फुटपाथों पर भूखे बच्चे पल जाते हैं
 
झूले ,पंछी ,बच्चे हों ग़र शाख़ों पर तो
सूखे भी हो पेड़ तो वो भी फल जाते हैं
 
शर्त यही है हक़ से कमाए हों ये तुमने
फिर सिक्के खोटे भी हों तो चल जाते हैं
 
तपती धूप हमेशा थोड़े रहती है जी
शाम आने पर, तय है,  सूरज ढल जाते हैं
 
सरल, सहज, सीधे लोगों की सोहबत करना
शातिर ,टेढ़े लोग तो अकसर छल जाते हैं
 
दे देते हैं जान “ख़याल” मुहब्बत में लोग
अंगारों पर फूलों से दिल जल जाते हैं
 


Monday 3 April 2023

ग़ज़ल-69-शिकायत है मुझे इस बेबसी से-उड़ान *

 

ग़ज़ल

 

शिकायत है मुझे इस बेबसी से

मेरा झगड़ा नहीं है ज़िंदगी से

 

अंधेरों ने तो सहलाया है मुझको

मिले हैं जख्म मुझको रौशनी से

 

 मेरी मुश्किल नहीं आसान हुई ,पर

मुझे हिम्मत मिली है बंदगी से

 

 

ये मेरे दुश्मनों के दोस्त भी हैं

डरा हूँ दोस्तों की मुख़बिरी से

 

ये शाइर है या आशिक़ या शराबी

ये पेश आता है कितनी सादगी से

 

सियासत ने चली है चाल फिर-फिर

लड़ाया आदमी को आदमी से

 

कटी है उम्र इक लाला की मिल में

चला है दाल –फुल्का नौकरी से


निभाते हैं सभी किरदार अपना

“ख़याल” अब क्या गिला करना किसी से

 

 

ग़ज़ल-68-साजिशों के तहत बंटे पत्थर-उड़ान *

 

साजिशों के तहत बंटे पत्थर

और फिर खून से सने पत्थर

नम सी आंखों में ख़्वाब बाक़ी हैं

देख पानी में डूबते  पत्थर

 

वक़्त इक  रेत की नदी जैसा

उसमें हम ढूढ़ते रहे पत्थर

 

यूं ही बेदम पड़े थे सदियों से  

तेरे छूने से जी उठे  पत्थर

 

कैसे कह दूं ख़ुदा नहीं मौजूद

मैंने देखे हैं तैरते पत्थर

 

वक़्त की ठोकरों के सदका ही

फूल से लोग हो गये पत्थर

 

दफ़्न क़ब्रों में फूल से चहरे

देख सीने पे अब  गढ़े पत्थर

 

नर्म लहजा न रास आया मुझे

फूल बांटे थे सर लगे पत्थर

 

आख़िरश कुछ न बन सका तो ख़याल

हमने सीने पे रख लिए पत्थर

उधर तुम हो , ख़ुशी है

  उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है   ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है   नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है   मुसीबत है , बुला ले ये ...