एक ताज़ा ग़ज़ल
दैर तोड़ा , कभी हरम तोड़ा
जब उजाला हुआ तो दम तोड़ा
यूं तिल्सिम -ए - ग़म-ओ -अलम तोड़ा
आज फिर मय-कदे में बैठे हो
हमको तोड़ा है बेबसी ने बहुत
हमको हालात ने तो कम तोड़ा
एक ताज़ा ग़ज़ल
तेज़ लवें भी जल-जलकर थोड़ी तो मद्धम हो जाती हैं
ज़ख्मों से उठ -उठ कर टीसें ख़ुद मरहम हो जाती हैं
छोटी –छोटी बातों पर अब दिल मेरा दुख जाता है
फूल गिरे टहनी से तो भी आँखें नम हो जाती हैं
बस इतना सा तो है किस्सा तुम्हारा
किसी ने जी लिया सोचा तुम्हारा
मोहब्बत का भरम कायम है अब तक
कभी परखा नहीं रिश्ता तुम्हारा
तुम्हें उस महजबीं से क्या तवक्कों
कभी देखा भी है चहरा तुम्हारा
हमारे हाथ छोटे थे ए किस्मत
कभी टूटा नहीं छीका तुम्हारा
बिना कारण ही डांटे तूने बच्चे
कहां निकला है अब गुस्सा तुम्हारा
तुम्हारी मेहनतों में सेंध मारी
किसी ने काटा है बोया तुम्हारा
बता क्या खोजती हो दादी अम्माँ
कबाड़ी ले गया चरखा तुम्हारा
"ख़याल" इस शायरी के शग़्ल में क्या
हुआ भी है कहीं चर्चा तुम्हारा
साज़िशें हैं आदमी के मन से खेला जाएगा
आपने क्या सोचना है ,ये भी सोचा जाएगा
आज जो मुट्ठी में है बालू उसे कस के पकड़
कल जो होगा ,कल वो होगा ,कल वो देखा जाएगा
आज़माना छोड़ रिश्ते को बचाना है अगर
टूट जायेगा ये रिश्ता जब भी परखा जाएगा
कोंपलें उम्मीद की फूटेंगी इसके बाद , पर
पहले इस टहनी से हर पत्ते को नोचा जायेगा
आदमी को आदमी से जिसने रक्खा जोड़कर
अब मोहब्बत का वो जर्जर पुल भी तोड़ा जाएगा
देखते हैं टूटती है सांस कैसे , कब , कहां
पेड़ से कब आख़िरी पत्ते को तोड़ा जाएगा
तय तो है मेरी सज़ा पहले से तेरी बज़्म में
अब बताने को कोई इलज़ाम खोजा जाएगा
दाँव पर ईमान भी मैंने लगा डाला "ख़याल"
खेल में अब आख़िरी यक्का भी फेंका जाएगा
ग़ज़ल – सतपाल ख़याल
ग़रीबों की गिरी दस्तार में क्या
कभी चर्चा हुआ सरकार में क्या
बहुत ख़बरें हैं बीमारी की फिर से
दवा आई नई बाज़ार में क्या
सियासत की सियाही थी क़लम में
हुआ था क्या , छपा अख़बार में क्या
रुकी है जांच , सब आरोप ख़ारिज
वो शामिल हो गए सरकार में क्या
कहानी लिखने वाले में है सब कुछ
बुरा -अच्छा किसी किरदार में क्या
जो ताक़त है क़लम की धार में वो
किसी भाले में या तलवार में क्या
जहां देखो , जिसे देखो , दुखी है
सुखी भी है कोई संसार में क्या ?
"ख़याल" अब रेस में शामिल नहीं हम
इस अंधी दौड़ में , रफ़्तार में क्या
उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है मुसीबत है , बुला ले ये ...