Saturday 27 January 2024

जब उजाला हुआ तो दम तोड़ा *

एक ताज़ा ग़ज़ल 

क्या सितमगर थे, क्या सितम तोड़ा 
दैर तोड़ा , कभी  हरम तोड़ा 

फ़र्ज़ पूरा किया चराग़ों ने 
जब उजाला हुआ तो दम तोड़ा 

आखरी सांस को औज़ार किया 
यूं  तिल्सिम -ए - ग़म-ओ -अलम तोड़ा 

आज फिर मय-कदे में बैठे हो 
किस  तमन्ना ने आज दम तोड़ा ?

हमको तोड़ा है बेबसी ने बहुत 
हमको हालात ने तो  कम तोड़ा 

पास रहते हो , साथ भी हो तुम 
वक़्त-ए- मुश्किल ने  ये भरम तोड़ा 


 
 





 


Wednesday 17 January 2024

खुदा को आपने देखा नहीं हैं *-New

खुदा को आपने  देखा  नहीं  हैं 
मगर वो  है नहीं ,  ऐसा नहीं हैं 

सताया है सभी को ज़िंदगी ने 
हमारा आपका क़िस्सा नहीं है 

शराफत का मुखौटा है , उतारो 
ये चेहरा आपका चहरा नहीं है 

हमेशा जीत जाता है यहाँ सच 
सुना  तो  है मगर देखा नहीं है 

कहा तो जा चुका है सब का सब ,अब 
कुछ ऐसा भी  है जो सोचा नहीं है 

कहानी मौत के आगे भी है कुछ 
ये  पन्ना आखरी  पन्ना  नहीं है 

पता तो सबको है सच क्या है लेकिन 
अलग है बात कि चर्चा नहीं है

"ख़याल" इस अब्र के टुकड़े से पूछो 
मेरे आँगन में क्यों  बरसा नहीं है 


Monday 15 January 2024

New-फूल गिरे टहनी से तो भी आँखें नम हो जाती हैं *

तेज़ लवें भी जल-जलकर थोड़ी तो मद्धम हो जाती हैं
ज़ख्मों से उठ -उठ कर टीसें ख़ुद मरहम हो जाती हैं

छोटी –छोटी बातों पर अब दिल मेरा दुख जाता है
फूल गिरे टहनी से तो भी आँखें नम हो जाती हैं

हक़ की राह पे चलने की जब हिम्मत करते हैं कुछ लोग
दुख थोड़े बढ़ने लगते है खुशियाँ कम हो जाती है

आदत बन जाते हैं दुख और साथी बन जाते हैं दर्द
बढ़ जाता है ज़ब्त तो दुःख की आदत सी हो जाती है

रिश्तों के धागों की गांठें लगता है खुल जायेंगी
सुलझाने लगता हूँ जब भी सब रेशम हो जाती हैं

कुछ यूं मुझको घेर के रखती हैं मन की लहरें हर पल
आसां लगने वाली राहें भी दुर्गम हो जाती हैं
पहले -पहल तो सिरहाने पर रहती हैं कुछ तस्वीरें
फिर तस्वीरें धीरे -धीरे बस अल्बम हो जाती हैं



Tuesday 9 January 2024

बस इतना सा तो है किस्सा तुम्हारा -New*

 
बस इतना सा तो है  किस्सा तुम्हारा 
किसी ने जी लिया सोचा तुम्हारा  

मोहब्बत का भरम कायम है अब तक 
कभी  परखा नहीं रिश्ता तुम्हारा 

तुम्हें   उस  महजबीं से क्या तवक्कों 
कभी देखा भी  है चहरा तुम्हारा

हमारे हाथ छोटे थे ए किस्मत 
कभी टूटा नहीं छीका तुम्हारा 

बिना कारण ही डांटे  तूने  बच्चे 
कहां निकला है अब  गुस्सा तुम्हारा 

तुम्हारी मेहनतों में सेंध मारी 
किसी ने काटा है बोया तुम्हारा 

बता  क्या खोजती हो दादी अम्माँ  
कबाड़ी ले गया  चरखा तुम्हारा 

 "ख़याल" इस  शायरी के शग़्ल में क्या 
हुआ भी है  कहीं चर्चा तुम्हारा  







Thursday 4 January 2024

साज़िशें हैं आदमी के मन से खेला जाएगा -New ghazal*

 साज़िशें हैं आदमी के मन से खेला जाएगा 
आपने क्या सोचना है ,ये भी सोचा जाएगा 

आज  जो मुट्ठी में है बालू उसे कस के पकड़ 
कल जो होगा ,कल वो होगा ,कल वो देखा जाएगा 

आज़माना छोड़ रिश्ते को बचाना है अगर 
टूट जायेगा ये  रिश्ता जब भी  परखा जाएगा 

कोंपलें उम्मीद की फूटेंगी इसके बाद , पर 
पहले इस टहनी से  हर पत्ते को  नोचा जायेगा 

आदमी को  आदमी से जिसने रक्खा जोड़कर 
अब मोहब्बत का वो जर्जर पुल भी  तोड़ा जाएगा 

देखते हैं टूटती है सांस  कैसे  , कब , कहां 
पेड़    से  कब   आख़िरी पत्ते को  तोड़ा  जाएगा 

तय तो है  मेरी  सज़ा पहले से तेरी बज़्म में 
अब बताने को  कोई इलज़ाम खोजा जाएगा

दाँव पर ईमान  भी  मैंने  लगा डाला "ख़याल"
खेल में  अब  आख़िरी  यक्का भी  फेंका  जाएगा 


दवा आई नई बाज़ार में क्या -New Ghazal*

ग़ज़ल – सतपाल ख़याल
 
ग़रीबों की  गिरी दस्तार में क्या 
कभी चर्चा हुआ सरकार  में क्या 

बहुत ख़बरें हैं बीमारी की फिर से 
दवा आई नई बाज़ार में क्या 

सियासत की सियाही थी  क़लम  में 
हुआ था क्या , छपा  अख़बार  में क्या 
 
रुकी है जांच ,  सब आरोप  ख़ारिज
वो शामिल हो गए सरकार में क्या 

कहानी लिखने वाले में है सब कुछ 
बुरा -अच्छा किसी किरदार में क्या  
 
जो ताक़त है क़लम  की धार में वो
किसी भाले में या तलवार में क्या
 
जहां देखो , जिसे देखो , दुखी है
सुखी भी है कोई  संसार में क्या ?
 
"ख़याल" अब रेस में शामिल नहीं हम
इस अंधी दौड़ में , रफ़्तार में क्या  





 
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उधर तुम हो , ख़ुशी है

  उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है   ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है   नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है   मुसीबत है , बुला ले ये ...