तेज़ लवें भी जल-जलकर थोड़ी तो मद्धम हो जाती हैं
ज़ख्मों से उठ -उठ कर टीसें ख़ुद मरहम हो जाती हैं
छोटी –छोटी बातों पर अब दिल मेरा दुख जाता है
फूल गिरे टहनी से तो भी आँखें नम हो जाती हैं
हक़ की राह पे चलने की जब हिम्मत करते हैं कुछ लोग
दुख थोड़े बढ़ने लगते है खुशियाँ कम हो जाती है
आदत बन जाते हैं दुख और साथी बन जाते हैं दर्द
बढ़ जाता है ज़ब्त तो दुःख की आदत सी हो जाती है
रिश्तों के धागों की गांठें लगता है खुल जायेंगी
सुलझाने लगता हूँ जब भी सब रेशम हो जाती हैं
कुछ यूं मुझको घेर के रखती हैं मन की लहरें हर पल
आसां लगने वाली राहें भी दुर्गम हो जाती हैं
पहले -पहल तो सिरहाने पर रहती हैं कुछ तस्वीरें
फिर तस्वीरें धीरे -धीरे बस अल्बम हो जाती हैं
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