Monday 20 November 2023

दोस्त मिलते हैं , दिल दुखाते हैं -उड़ान *


 बरसों पुरानी ग़ज़ल डायरी के मुड़े पन्ने से -

दोस्त मिलते हैं , दिल दुखाते हैं 
सब तेरे नाम से बुलाते हैं  

 ये हुनर वक़्त ने सिखाया हमें 
आँख रोए तो मुस्कुराते हैं

लोग हंसते हैं दिल-शिकस्ता पे
तंज़  करते हैं , दिल दुखाते हैं 

राह मुश्किल है शौक़ की और हम 
हद से बढ़ते हैं , लौट आते हैं 

 बाक़ी बचता बस सिफ़र जानां 
उम्र से दिन वो जब घटाते हैं   

हम तो बेनूर  से हैं पत्थर बस 
हम  तेरी लौ से जग मगाते हैं 

दिल की दिल में रही कही न ख़याल 
सोच लेते हैं , कह न पाते हैं

बुतशिकन मेरे न काफ़िर मेरे

 बुतशिकन मेरे न काफ़िर मेरे

मैं नमाजी हूँ न मंदिर मेरे

टीस इस दिल से उठी है शायद
“ज़ख्म ग़ायब है बज़ाहिर मेरे”

वक़्त आने पे बदल जायेंगे
हैं तो कहने को ये आखिर मेरे

रात कटते ही सहर आयेगी
सोचता क्या है मुसाफ़िर मेरे

मै न उर्दू ,न मैं हिंदी साहिब
बस ग़ज़ल हूँ मैं ए शाइर मेरे

कितने रंगो में है रौशन मिट्टी
ए ख़ुदा! मेरे, मुसव्विर मेरे

ये हरे लाल से परचम जिनके
मैं ख़ुदा हूँ ये हैं ताजिर मेरे

सतपाल ख़याल

देहरी पर इक दीप जला कर बैठी है-उड़ान *

 

देहरी पर इक दीप जला कर बैठी है
कोई विरहन ख़्वाब सजा कर बैठी है

सूरज की तस्वीर बना कर बैठी है
रात हमें कैसे उलझा कर बठी है
 
किस्मत उड़ने देती है कब सपनों को
पाँव की जंजीर बना कर बैठी है
 
तुलसी के विरबे को जल देकर अम्माँ 
पास में उसके दीप जलाकर बैठी है 

 
 रोते रोते हंसने लग जाती है देख


 कैसे दुःख का बोझ उठा कर बैठी है

दुःख की गठरी धोते रहना उफ़ नही कहना है -दस्तक

 दुख की गठरी धोते रहना उफ़ नही कहना है 
जब तक सांस चलेगी तब तक ज़िंदा रहना है 

दुख रोटी है ,दुख चूल्हा है ,दुख ही पेट की भूख  
दुःख ओढ़ा है , दुख ही बिछाया , दुख ही पहना है 


चिंता साथ हुई है पैदा ,साथ ही जायेगी

विरहन का सिंगार है चिंता , 
चिंता  बिंदिया , चिंता काजल  चिंता  गहना है


पहना है 

इस तिनके को इस दरिया के साथ ही बहना है 

अंतिम रेखा दूर बहुत है , चलते रहना है 

पलकों पर इक आंसू आकर ठहरा है- उड़ान *

 

पलकों पर इक आंसू आकर ठहरा है

मेरे दुःख पर चौकीदार का पहरा है 


सागर पर इक बूँद का कैसा पहरा है 

पलकों पर इक आंसू आकर ठहरा है


ख़ुशियों पर इस चौकी दार का पहरा है

 

कितने दुःख बैठे इसकी गहराई में

दिल तो अपना सागर से भी गहरा है


कैसा सपना देख रहा है पागल मन

आगे पीछे बस सहरा ही सहरा है

  

रात भले कितनी भी लम्बी हो जाए 

मेरी आंख में सपना बहुत सुनहरा है

 

जंगल की फरियाद सुनेगा कौन “ख़याल”

जिसके हाथ में आरी है वो बहरा है

 

 

 

 

 

 

 

हमको तकदीर बचा ले कोई बात बने-उड़ान *

 
हमको तक़दीर बचा ले कोई बात बने
दर्द , दामन ही छुड़ा  ले  कोई  बात बने
 
क्या गुज़ारिश मैं करूँ उससे डुबोया जिसने
अब तो दरिया ही उछाले तो कोई बात बने

कश्तियाँ हैं ये तो कागज़ की लड़ेंगी कब तक
इन को तूफां ही बचा ले तो कोई बात बने
 
कोई सूरज मेरी खिड़की पे तो उगने से रहा
अब  कोई  घर से निकाले तो कोई बात बने
 
ख़ुदकुशी करने की हिम्मत भी  नहीं  है मुझमें
ज़िंदगी मुझको संभाले तो कोई बात बने

 ढक लिया वक्त की  काई ने मैं  ठहरा जब से
अब कोई आके खंगाले तो कोई बात बने

ग़म से हारे नहीं हम , हमसे नहीं जीता ग़म 
कोई सिक्का जो उछाले तो कोई बात बने
 
मैं ख्यालों में जिसे चूम रहा हूँ , मुझको
वो गले से जो लगाले तो कोई बात बने
 
 

किसी ने की है ख़ुदकुशी , मरा है आम आदमी -उड़ान *

 


 
किसी ने की है ख़ुदकुशी , मरा है आम आदमी 
कि जिंदगी से इस कदर खफ़ा है आम आदमी
 
ये मजहबी फसाद सब ,सियासती जूनून हैं
जुनू की आग में सड़ा जला है आम आदमी
 
ख़ुद अपना खून बेचकर खरीदता है रोटियां
गरीब है इसीलिए बिका है आम आदमी


ख़याल में है रोटियाँ तो ख़्वाब में भी रोटियां
बस इनके ही जुगाड़ में मरा है आम आदमी


खुशी मिली उधार की .लिया मकां कर्ज़ पर
यूं उम्र बहर के कर्ज़ में दबा है आम आदमी


सियासती फसाद हो ,बला हो कोई कुदरती
है बेगुनाह पर सदा , मरा है आम आदमी
 

हमसे मिलने कैसे भी करके बहाने आ गया-उड़ान *

 
ग़ज़ल
हमसे मिलने कैसे भी  करके बहाने आ गया
यार अपना हाले-दिल सुनने –सुनाने आ गया
 
कोंपलें फूंटी भार आने को थी कि फिर  से वो
ज़र्द मौसम लेके हमको आजमाने आ गया
 
मजहबी उन्माद भडका जब हमारे शह्र में
मेरा हमसाया ही मेरा घर जलाने आ गया
 
वक़्त ने कल फूंक डाला था चमन मेरा मगर
आज वो कुछ फूल गमलों में उगाने आ गया
 
बह गईं सैलाब में सब हस्ती गाती बस्तियां
अब वो गोवर्धन को उंगली पे उठाने आ गया

 
कुछ ही दिन बीते ख़याल अपने यहाँ पर चैन से
फेर फिर तकदीर का हमको डराने आ गया
 

Tuesday 7 November 2023

पानी पर तस्वीर बना कर देखूंगा-उड़ान *

 

 

फिर मैं तेरे ख़्वाब सजा कर देखूंगा  

 पानी पर तस्वीर बना कर देखूंगा


गाँव , गली ,खिड़की से पूछूंगा जाकर  

मैं तुम को आवाज़ लगा कर देखूंगा

 

आंखों के पानी से लिखूंगा गजलें 

मैं पानी से दीप जला कर देखूंगा

 

लोग सलीब उठा कर कैसे चलते हैं

मैं इक शख्स का बोझ उठा कर देखूंगा

 

कोई एक सुबह तो अच्छी आएगी

मैं इक आस की जोत जला कर देखूंगा 

 

हो सकता है कोई किनारा मिल जाए

दूर क्षितज के पार मैं जा कर देखूंगा

 

 लुटा कर देखूंगा

सूना कर देखूंगा

जुटा कर देखूंगा

 

कमा कर देखूंगा

 

 

Saturday 4 November 2023

तुझे ज़िंदगी यूँ बिताया है मैनें-उड़ान *

 
तुझे ज़िंदगी यूँ बिताया है मैनें
कि पलकों से अंगार उठाया है मैनें

किसी से मुहब्बत किसी से अदावत
कि हर एक रिश्ता निभाया है मैनें

तेरी बेवफ़ाई बकाया है मुझ पर
गो क़र्ज़ा वफ़ा का चुकाया है मैनें

अंधेरों से मुझको शिकायत नहीं है 
उजाला नज़र में छुपाया है मैनें

 
ज़माने के ग़म हैं मेरी शायरी में 
कि क़ूज़े में दरिया उठाया है मैंने

हरिक मोड़ पर बस बदी ही खड़ी थी
बचा जितना दामन बचाया है मैंने

मैं तुम पे ये तोहमत धरूँ क्यों ख़यालअब
कि ख़ुद अपना दामन जलाया है मैंने
 
 
 

उधर तुम हो , ख़ुशी है

  उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है   ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है   नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है   मुसीबत है , बुला ले ये ...