हमको तक़दीर बचा ले कोई बात बने
दर्द , दामन ही छुड़ा ले कोई बात बने
क्या गुज़ारिश मैं करूँ उससे डुबोया जिसने
अब तो दरिया ही उछाले तो कोई बात बने
कश्तियाँ हैं ये तो कागज़ की लड़ेंगी कब तक
इन को तूफां ही बचा ले तो कोई बात बने
कोई सूरज मेरी खिड़की पे तो उगने से रहा
अब कोई घर से निकाले तो कोई बात बने
ख़ुदकुशी करने की हिम्मत भी नहीं है मुझमें
ज़िंदगी मुझको संभाले तो कोई बात बने
ढक लिया वक्त की काई ने मैं ठहरा जब से
अब कोई आके खंगाले तो कोई बात बने
ग़म से हारे नहीं हम , हमसे नहीं जीता ग़म
कोई सिक्का जो उछाले तो कोई बात बने
मैं ख्यालों में जिसे चूम रहा हूँ , मुझको
वो गले से जो लगाले तो कोई बात बने
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