Monday 20 November 2023

पलकों पर इक आंसू आकर ठहरा है- उड़ान *

 

पलकों पर इक आंसू आकर ठहरा है

मेरे दुःख पर चौकीदार का पहरा है 


सागर पर इक बूँद का कैसा पहरा है 

पलकों पर इक आंसू आकर ठहरा है


ख़ुशियों पर इस चौकी दार का पहरा है

 

कितने दुःख बैठे इसकी गहराई में

दिल तो अपना सागर से भी गहरा है


कैसा सपना देख रहा है पागल मन

आगे पीछे बस सहरा ही सहरा है

  

रात भले कितनी भी लम्बी हो जाए 

मेरी आंख में सपना बहुत सुनहरा है

 

जंगल की फरियाद सुनेगा कौन “ख़याल”

जिसके हाथ में आरी है वो बहरा है

 

 

 

 

 

 

 

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