क़ैद था आंखों में इक ग़म का पहाड़
एक आंसू क्या गिरा , दरका पहाड़
बादलों से रोज़ लड़ता था पहाड़
छिन गई हिम्मत तो फिर टूटा पहाड़
छिन गई हिम्मत तो फिर टूटा पहाड़
हमने जब मिट्टी जड़ों से काट दी
फिर तो घुटनों पर ही आ बैठा पहाड़
ग़र ज़मीं प्यासी नहीं तो मत बरस
बादलों से इल्तिजा करता पहाड़
ले गया पानी बहा कर कितने घर
अब पहाड़ों पर कोई टूटा पहाड़
आरियों , कुल्हाड़ियों की धार ने
थोड़ा -थोड़ा रोज़ काटा था पहाड़
घुल गया आँखों के पानी में “ख़याल”
नम सी आंखों में हो ज्यूँ सुरमा पहाड़