अम्माँ की आसीस , पिता की झिड़की
लेकर आया हूँ
मैं थोड़ी सी नीम , ज़रा सी , तुलसी लेकर आया हूँ
अपने ज़िंदा होने की तस्दीक़ करानी है मुझको
पेंशन के दफ़्तर से मैं ये चिट्ठी लेकर आया हूँ
भूख-ग़रीबी , बेकारी की बता नहीं छेडूगा मैं
सरकारी अख़बार से ख़बरें अच्छी लेकर आया हूँ
क्या बोलूँ मैं , मेरी मुहब्बत , मेरी कहानी कैसी है
जो कांटों पर बैठी थी वो तितली लेकर आया हूँ
पत्थर के इस शह्र में मुझको याद आती थी खेतों की
मैं अपने गाँवों
से थोड़ी मिट्टी लेकर आया हूँ
आज "ख़याल" बुढ़ापे में जब बेटा मुझको छोड़ गया
मैं अपने गुज़रे बापू की लाठी लेकर आया हूँ