Sunday 19 February 2023

ग़ज़ल -59 -अम्माँ की आसीस , पिता की झिड़की लेकर आया हूँ-उड़ान *

 

अम्माँ की आसीस , पिता की  झिड़की  लेकर आया हूँ
मैं थोड़ी सी नीम , ज़रा सी , तुलसी  लेकर आया हूँ
 
अपने ज़िंदा होने की तस्दीक़ करानी है मुझको 
 पेंशन के दफ़्तर से मैं ये चिट्ठी लेकर आया हूँ
 
भूख-ग़रीबी , बेकारी की  बता नहीं   छेडूगा मैं
सरकारी अख़बार  से ख़बरें अच्छी लेकर आया हूँ 
 
क्या बोलूँ मैं , मेरी मुहब्बत , मेरी कहानी  कैसी है
जो कांटों पर बैठी थी  वो  तितली  लेकर आया हूँ
 
पत्थर के इस शह्र में मुझको याद आती थी खेतों की 
मैं अपने गाँवों  से थोड़ी मिट्टी लेकर आया हूँ

आज "ख़याल" बुढ़ापे में जब बेटा मुझको छोड़ गया 
मैं अपने गुज़रे बापू की लाठी लेकर आया हूँ 


 

Thursday 16 February 2023

ग़ज़ल -58-ख़ुश्क आंखों में ख़्वाब है फिर से-उड़ान *

 
ख़ुश्क आंखों में ख़्वाब है फिर से
ख़त में लिपटा गुलाब है फिर से
 
फिर से दौड़ी है प्यास सहरा में
और नज़र में सराब है फिर से
 
फिर उदासी है बेसबब सी कोई
शाम है और शराब है फिर से
 
दर पे दस्तक है देखिए तो ज़रा
कौन ख़ाना-ख़राब है फिर से
 
इक तमन्ना ने सर उठाया है
फूटने को हबाब है फिर  से
 
तुमने फाड़ी हैं अर्ज़ियाँ मेरी
यानि मुझको को जवाब है फिर से
 
जिसमें इक ख़त था  ,एक फोटो थी
हाथ में वो किताब है फिर से
 
अब लगावट नहीं किसी से “ख़याल”
आंख पर क्यों पुर –आब है फिर से
 
 
 

ग़ज़ल - 57 -यहाँ मुश्किल है अब मेरा गुज़ारा, अब मैं चलता हूँ -उड़ान *

 

यहाँ मुश्किल है अब मेरा गुज़ारा, अब मैं चलता हूँ
समझ में आ गया है खेल सारा, अब मैं चलता हूँ 
 
ख़यालों के किसी जंगल में यादों का कोई लश्कर
किसी इक याद ने मुझको पुकारा, अब मैं चलता हूँ
 
ये धारे  ,कश्तियाँ , माँझी , समन्दर याद रखूंगा
नज़र आने लगा मुझको किनारा अब मैं चलता हूँ
 
बदन को ओढ़कर जीता रहा बरसों बरस तक मैं
ये चोला था पुराना सो उतारा अब मैं चलता हूँ
 
मिला तू सबसे हसके अपनी महफ़िल में, सिवा मेरे
समझ में आ गया तेरा इशारा,  अब मैं चलता हूँ
 
कहां से हूँ , कहां का हूँ , कहां पे आके बैठे हूँ
गिरा है फ़र्श पर अर्शों का तारा , अब मैं चलता हूँ   
 
“ख़याल” अब ऊब सी है दिल में , घर में और  दफ़्तर में
 बहुत अरसा घुटन सी में गुज़ारा ,अब मैं चलता हूँ

 

Tuesday 14 February 2023

ग़ज़ल -56- ज़िंदगी इम्तहान है प्यारे-उड़ान *

 
ज़िंदगी इम्तिहान  है प्यारे
  रोज़ मुश्किल में जान है प्यारे
 
ये तसव्वुर के आसमानों पर
शाइरी की उड़ान है प्यारे
 
देख  पत्ते तो झड़  गए कब के
शाख़ पर बस निशान है प्यारे
 
बात फूलों के तीर सी छूटी
                           ये तेरे लब  कमान है प्यारे                             
 
 दिल की वीरानियों पे क्या रोना
अब ये ख़ाली  मकान है प्यारे
 
   सच के सौदे तो मुफ़्त बटते हैं    
झूठ की ही दुकान है प्यारे
 
वर्ना तो राख़ मरघटों की है
जान है तो जहान है प्यारे
 
काट देती  है कलेजा पल में
तेग़ जैसी ज़बान है प्यारे
 
 बच के निकलो "ख़याल" तो मानें 
अब शिकंजे में जान है प्यारे
 
 
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Tuesday 7 February 2023

ग़ज़ल -55-किसी के दिल में जगह न पाई , न कोई तिनकों का आशियां है- उड़ान *

किसी के दिल में जगह न पाई , न कोई तिनकों का आशियां है
अब ऐसी हालत में क्या बताऊँ , न साएबाँ है, न पासवां है
वो तेरी यादों का अब भी दिल में , भटक रहा कोई कारवां है
नज़र से हद्दे–ए-नज़र तलक बस धुआं -धुआं है , धुआं – धुआं है
तू लाख भूले वो दिन पुराने , मुझे तो है याद वो ज़माना
वो सोलवें साल की मुहब्बत , जो अब भी दिल में जवां-जवां है
है तेरी यादों का एक झरना , जो दश्ते-दिल का है आसरा सा
तेरी मुहब्बत का मेरे दिल में बचा हुआ बस यही निशां है
ये कैसी जादूगरी है दुनिया , इलाही इसकी है इंतिहा क्या
“ख़याल” हमने उस आसमां के भी पार पाया इक आसमां है

Saturday 4 February 2023

ग़ज़ल -54- हर तमन्ना लहू हमारी है- उड़ान *

हाय ! क़िस्मत अदू हमारी है
हर तमन्ना लहू हमारी है
यानि कुछ काम आ पड़ा हमसे
बे-सबब आबरू हमारी है
फिर न आना हो ऐसी दुनिया में
अब यही जुस्तजू हमारी है
मौत के बाद हमने पाया है
हम हैं और आरज़ू हमारी है
क्या मिला है सरा-ए-फ़ानी से
ख़ुद ही से गुफ़्तुगू हमारी है
आईने में भी हम ही हैं शायद
शक्ल तो हू-ब-हू हमारी है
लौ से कहते रहे पतंगे “ख़याल”
रौशनी चार-सू हमारी है

Friday 3 February 2023

ग़ज़ल -53-जब तक घट में श्वास रहेगा-उड़ान *

 
ग़ज़ल
 
जब तक घट में श्वास रहेगा
तब तक कारावास रहेगा
 
  बाप रहेगा जब तक शापित
बेटे को  बनवास रहेगा
 
रिशतों के पुल टूट चुके हैं
रिश्तों का दुःख पास रहेगा
 
   इक दिन की इतवार की छुट्टी
    इक दिन ही मधुमास रहेगा
मुँह में राम बगल में बरछी
तुम पर क्या विश्वास रहेगा !
 
जोगी ! दुनिया बदलेगी ?
जीवन भर संत्रास रहेगा ?
 
दूर “ख़याल” रहा हर कोई
तू क्या मेरे पास रहेगा !
 

Thursday 2 February 2023

ग़ज़ल -52 -धागे को चटखाना उसके हित में था-उड़ान*

धागे को चटखाना उसके हित में था
रिश्ता तोड़ के जाना उसके हित में था

उसकी मंशा थी ही नहीं सुलझाने की
उलझा ताना–बाना उसके हित में था
 
आग बुझाना जिसकी ज़िम्मेदारी थी
बस्ती का जल जाना उसके हित में था
 
डरता था वो नारों और मशालों से
  और लवें बुझ जाना उसके हित में था
 
     जिसने सूरज बेचा ठेकेदारों को
जुगनू का मर जाना उसके हित में था
 
चारागर की नीयत ही कुछ ऐसी थी
   ज़ख्मों का छिल जाना उसके हित में था
        
जाल बिछा कर उसने दाने फेंके थे
चिड़िया का ललचाना उसके हित में था
  
 
 
 
 
 
 



उधर तुम हो , ख़ुशी है

  उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है   ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है   नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है   मुसीबत है , बुला ले ये ...