Thursday 29 June 2023

ग़ज़ल-85 -दर्द है ज़िंदगी , है दवा जिंदगी-उड़ान *

 
दर्द है ज़िंदगी  ,  है दवा जिंदगी
ज़िंदगी का है ख़ुद   आसरा ज़िंदगी
 
ख़त्म हो के भी ये ख़त्म होता नहीं
ख़्वाहिशों का कोई सिलसिला जिंदगी
 
हर तरफ़ दुख में डूबे हुए लोग हैं
किस तरफ है ख़ुशी कुछ बता ज़िंदगी

 आदमी , आदमी से ही डरने लगा
ज़िंदगी से ही क्यों है ख़फ़ा  ज़िंदगी जिंदगी

 हर गली मोड़ पर है कहानी नई
रंग कितने हैं तेरे बता ज़िंदगी

Thursday 15 June 2023

ग़ज़ल-84- चुप रहते हैं सह लेते है सो जाते हैं और फिर बस -उड़ान*

चुप रहते हैं, सह लेते है , सो जाते हैं.. और फिर बस
ना-इंसाफ़ी के हम आदी हो जाते हैं ..और फिर बस  

चोर-सिपाही हम प्याला हैं ,पहरेदार भी साथी है
और खज़ाने इक दिन ख़ाली हो जाते हैं.. और फिर बस

 बेसिर पैर की टीवी पर कुछ चर्चा चलती रहती है
असली मुद्दे इस चिल –पों में खो जाते हैं.. और फिर बस

बचपन और जवानी बीती  ,फिर लाठी से मरघट तक
हम मिट्टी में मिलकर मिट्टी हो जाते हैं.. और फिर बस
 
 
संसद में है शोर –शराबा , सड़कें हैं ख़ामोश “ ख़याल”
मुद्दे सारे गौण हमारे हो जाते हैं ...और फिर बस
 
 

Thursday 8 June 2023

ग़ज़ल-83 -अब यहाँ आके कोई क्या बैठे-उड़ान*

 

अब वहां जाके कोई क्या बैठे
उसकी महफ़िल में सब ख़ुदा बैठे
 
कुछ लगावट न थी मरासिम में
इसलिए हम  जुदा - जुदा बैठे
 
हम हैंदुःख हैं , ये ना-उमीदी है
हम ये कैसी जगह पे आ बैठे
 
बाग़ में सैर करने आये थे
पेड़-पौधों से दिल लगा बैठे
 
जिस जगह से सफ़र किया था शुरू
फिर उसी मोड़ पर हैं आ बैठे
 
उसने रस्मन कहा था कैसे हो
हम तो दुख -सुख उसे सुना बैठे
 
अब फ़क़ीरी में डर नहीं है ख़याल
पास जो कुछ था वो लुटा बैठे
  

उधर तुम हो , ख़ुशी है

  उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है   ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है   नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है   मुसीबत है , बुला ले ये ...