Monday 29 May 2023

ग़ज़ल-82-ढलते सूरज को तो देखा होगा-उड़ान *

 
ढलते सूरज को जो  देखा होगा
वो  कभी याद तो करता होगा

जब वो उस मोड़ से गुज़रा होगा 
कुछ उसे याद तो आया होगा 

जब वो उस मोड़ से गुज़रा होगा 
याद कुछ उसको तो आया होगा 
 
छोड़ कर जिस्म चला हूँ मैं  जिधर
उस तरफ भी कोई रहता होगा 

बेल –बूटे हैं तरो ताज़ा से
वो इसी राह से गुज़रा होगा
 
प्यास ये सोच के मिट जाती है
अब्र उस पार तो बरसा होगा
 
शाख़ पल भर को तो रोई होगी
फूल कुछ कह के तो टूटा होगा
 
मौत का डर गया दिल से मेरे 
अब मेरे साथ बुरा क्या  होगा
  
था तो  मग़रूर सा  बादल  लेकिन
जल रहे घर को तो देखा होगा
 
बस मेरे शह्र की देखी  होगी
मरे बारे में भी सोचा होगा
 
ज़ख़्म है ये तो मोहब्बत का "ख़याल"
 वक़्त के साथ ये गहरा होगा
 
 

Wednesday 24 May 2023

ग़ज़ल -81-यही सिस्टम की साज़िश है की तुम मजबूर हो जाओ-उड़ान *

 

यही सिस्टम की साज़िश है कि तुम मजबूर हो जाओ
किसानी छोड़कर , मिल में कहीं मज़दूर हो जाओ
 
बदल लो लहज़ा अपना ,चाल अपनी , बात अपनी तुम
कि सत्ता मिल गई है , रहबरो ! मग़रूर हो जाओ
 
हवाएँ साज़िशों की , घर जला देंगी ,  ज़रा बच के
ये चिंगारी सियासी है ,  ज़रा सा  दूर हो जाओ
 
अँधेरा ही मुकद्दर है ,  ग़रीबों से कहा उसने
तम्हारे रब्ब की मर्ज़ी है कि तुम बेनूर हो जाओ
 
हवा ,पानी ख़रीदो तुम,  किराए के मकानों में
बसो शहरों में जाकर , गाँव से  तुम दूर हो जाओ
 
मैं शायर हूँ  , मेरा क्या है , पड़ा रहने दो कोने में
दुआ मेरी लगे, ए मस्ख़रो ! मशहूर हो जाओ
 
“ख़याल” अब थक गया हूँ , रोज़ थोड़ा-थोड़ा मरके मैं
मेरे ज़ख्मों !  गुज़ारिश है , कि तुम  नासूर हो जाओ
 
 

Friday 19 May 2023

ग़ज़ल-80-मैं हैराँ था , अजब क़िस्सा हुआ था-उड़ान*



मैं  हैराँ था , अजब  क़िस्सा हुआ था
कि पत्ता शाख़ से रूठा हुआ था
 
दिलासा ख़ुद को दे लते हैं यूं हम
कि सब किस्मत का ही लिक्खा हुआ था
 
तसव्वुर में बुने थे जाल मैंने
मैं अपनी सोच में भटका हुआ था
 
मुझे समझा रहे थे, क्या है दुनिया
 जहन्नम तो मेरा देखा हुआ था

ज़बां मीठी थी,  बरछी थी बग़ल में
वही धोखा था , दोबारा हुआ था
 
किसी की जुस्तजू मैं कैसे करता
मैं अपने आप से बिछड़ा हुआ था
 
शिकायत थी मुझे दुनिया से भी पर 
मैं अपने घर में ही बिखरा हुआ था

ज़रा ठहरो जो मौत आये तो चलना  
कि अपने आप को रोका हुआ था
 
“ख़याल” इक घाव था बरसों पुराना
जो भर कर और भी गहरा हुआ था
 


Monday 15 May 2023

ग़ज़ल -79-घर से दफ़्तर, दफ़्तर से घर, कैसा चक्कर चलता है- उड़ान*

 

घर से दफ़्तर, दफ़्तर से घर,  कैसा चक्कर चलता है

घर में बैठे होते हैं पर मन में दफ़तर चलता है

 

कितने ही दरिया हैं जो बस रेत से उलझे रहते हैं

कुछ दरिया ऐसे हैं जिनके साथ समन्दर चलता है

 

बच्चे नौकर बनने को इस्कूल गये हैं और पिता

जूते –फीते कसके घर से,  नौकर बनकर चलता है

 

चूल्हा जलता रखने को बस , दिन भर जलते हैं हम लोग

कितने समझौते करते हैं, तब जाकर घर चलता है

 

सच्ची बातें , अच्छी बातें , सब जंजाल किताबी है

सच कहता हूँ , झूठ का सिक्का खोटा है, पर चलता है

 

देख रहे होते हैं दिन भर शातिर लोगों की लीला

थक कर सो जाते हैं तो फिर ख़्वाब में मंज़र चलता है

 

रोज़ी –रोटी , घर की चिंता , मर-मर जीते लोग “ख़याल”

माँ की कोख़ से मरघट तक, हर मन में ये डर चलता है

 

Saturday 13 May 2023

ग़ज़ल-78-तेरे बिन कटी, मेरी ज़िंदगी, मेरे दिल में बस ये मलाल है-उड़ान *

 तेरे बिन कटी, मेरी ज़िंदगी, मेरे दिल में बस ये मलाल है

मुझे चाहता है तू अब भी क्या ? मेरे लब पे बस ये सवाल है
तू जुदा भी है , तू मिला भी है, तू है ख़ुद ज़मीं, तू ही आसमां
तू कमाल है , ए मेरे ख़ुदा ! बे-मिसाल तेरी मिसाल है
न रक़ीब है , न हबीब है, न है दिल में ग़म, न है आँख नम
ये है दौर क्या ? ये दयार क्या ? जहाँ हिज्र है, न विसाल है
मेरे साहिबा , मेरे साजना , तू मिले तो क्या , न मिले तो क्या
तेरे जुस्तजू में ही ख़ुश हूँ मैं , तेरी आरज़ू ही कमाल है
किसी को किसी की हो क्यों ख़बर, है जुदा –जुदा सभी का सफ़र
कि है फ़िक्र सबकी जुदा-जुदा, यहाँ सबको अपना "ख़याल" है

Friday 12 May 2023

ग़ज़ल -77-मैं अब ताज़ा ख्यालों से ही इस महफ़िल को महकाऊं-उड़ान*

 

ग़ज़ल


चलूँ ताज़ा ख़यालों से मैं इस महफ़िल को महकाऊं

है मौसम कोंपलों का, क्यों कहानी ज़र्द दोहराऊँ

 

कसे फिर साज़ के ए दिल  जो मैने तार हिम्मत से

मुझे तुम रोक लेना ग़र पुराना गीत मैं गाऊँ

 

मुझे तू अपनी सोहबत में ही रहने दे मेरे मौला

कि मैं  फिर से किसी गुल की मुहब्बत मे न मर जाऊँ

 

मुहब्बत से ही मुमकिन है कि रौशन हों हमारे दिल

मै लेकर लौ मुहब्बत  की अब आंगन तक तो आ जाऊँ


मुहब्बत के चराग़ों से चलो हम रौशनी बाँटें 

उधर से तुम चले आओ , इधर से मैं चला आऊं

 

Thursday 11 May 2023

ग़ज़ल -76-अपने घर के दीवारो – दर देखे हैं- उडान*

 

अपने घर के दीवारो – दर देखे हैं
जाते –जाते सारे मंज़र देखे हैं
 
राजा ,रंक ,फ़कीर, सिकन्दर, दीवाने
 ताबूतों में टूटे  पिंजर देखे है   
 
बात चली हैं मेरी आँख के सपनों की  
रेत में डूबे कितने पत्थर देखे हैं  
 
क्या जाने कब लौटूं मैं परदेस से अब
  मुड़-मुड़ कर सब गाँव के घर देखे हैं
 
कल तक फूलों की क्यारी था दिल पर अब    
सूख रहे तालाब में कंकर देखे हैं
 
     चलते फिरते लोगों के झुकते सर पर,
दुःख के भारी भरकम गट्ठर देखे हैं
 
आंसू ,आहें, शाम ,उदासी और “ख़याल”
शाइर हूँ ,ग़ज़लों के ज़ेवर  देखे हैं 
 
 

Thursday 4 May 2023

ग़ज़ल-75-ख़राब हाल थे सरकार कुछ किया कि नहीं- उड़ान *

 
ख़राब हाल थे सरकार कुछ किया कि नहीं ?
जो हाशिये पे थे उनका भी कुछ हुआ कि नहीं ?
 
मुझे तो भोर के नग्में सुनाई देते हैं
पता करो कि उजाला अभी हुआ कि नहीं ?
 
सुना है हमने बहार आने वाली है जल्दी
रुका हुआ था जो डोला अभी उठा कि नहीं?
 
वो बुन रहा था कोई आफ़ताब बरसों से
किवाड़ खोल के देखो कि दिन चढ़ा कि नहीं ?
 
उसे कहो कि ये सब तख़्त ताज दो दिन हैं
कि उसने क़िस्सा सिकन्दर का वो सूना कि नहीं ?
 
अभी धुएँ को ही क्या आसमां वो कहता है ?
अना का आंख पे पर्दा था जो हटा कि नहीं ?
 
सुनाओ हाल मुझे मेरे गाँव का यारो
वो पुल जो टूट चूका था अभी बना कि नहीं?
 
यही तो पूछते ही  दम निकल गया माँ का
अभी बिदेस से बेटा मेरा चला कि नहीं ?
 
“ख़याल”  नाम तेरा याद है उसे अब तक ?
जो उसने लिक्खा था बाजू पे वो मिटा कि नहीं ?
 

उधर तुम हो , ख़ुशी है

  उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है   ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है   नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है   मुसीबत है , बुला ले ये ...