ढलते सूरज को जो देखा होगा
उस तरफ भी कोई रहता होगा
बेल –बूटे हैं तरो ताज़ा से
वो इसी राह से गुज़रा होगा
प्यास ये सोच के मिट जाती है
अब्र उस पार तो बरसा होगा
शाख़ पल भर को तो रोई होगी
फूल कुछ कह के तो टूटा होगा
मौत का डर गया दिल से मेरे
अब मेरे साथ बुरा क्या होगा
था तो मग़रूर सा बादल लेकिन
जल रहे घर को तो देखा होगा
बस मेरे शह्र की देखी होगी
मरे बारे में भी सोचा होगा
ज़ख़्म है ये तो मोहब्बत का "ख़याल"
वक़्त के साथ ये गहरा होगा