बस इतना सा तो है किस्सा तुम्हारा
किसी ने जी लिया सोचा तुम्हारा
मोहब्बत का भरम कायम है अब तक
कभी परखा नहीं रिश्ता तुम्हारा
तुम्हें उस महजबीं से क्या तवक्कों
कभी देखा भी है चहरा तुम्हारा
हमारे हाथ छोटे थे ए किस्मत
कभी टूटा नहीं छीका तुम्हारा
बिना कारण ही डांटे तूने बच्चे
कहां निकला है अब गुस्सा तुम्हारा
तुम्हारी मेहनतों में सेंध मारी
किसी ने काटा है बोया तुम्हारा
बता क्या खोजती हो दादी अम्माँ
कबाड़ी ले गया चरखा तुम्हारा
"ख़याल" इस शायरी के शग़्ल में क्या
हुआ भी है कहीं चर्चा तुम्हारा
No comments:
Post a Comment