किसी ने की है
ख़ुदकुशी , मरा है आम आदमी
कि जिंदगी से इस कदर
खफ़ा है आम आदमी
ये मजहबी फसाद सब
,सियासती जूनून हैं
जुनू की आग में सड़ा
जला है आम आदमी
ख़ुद अपना खून बेचकर
खरीदता है रोटियां
गरीब है इसीलिए बिका
है आम आदमी
ख़याल में है रोटियाँ
तो ख़्वाब में भी रोटियां
बस इनके ही जुगाड़
में मरा है आम आदमी
खुशी मिली उधार की .लिया मकां कर्ज़ पर
यूं उम्र बहर के
कर्ज़ में दबा है आम आदमी
सियासती फसाद हो
,बला हो कोई कुदरती
है बेगुनाह पर सदा
, मरा है आम आदमी
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