बुतशिकन मेरे न काफ़िर मेरे
मैं नमाजी हूँ न मंदिर मेरे
टीस इस दिल से उठी है शायद
“ज़ख्म ग़ायब है बज़ाहिर मेरे”
वक़्त आने पे बदल जायेंगे
हैं तो कहने को ये आखिर मेरे
रात कटते ही सहर आयेगी
सोचता क्या है मुसाफ़िर मेरे
मै न उर्दू ,न मैं हिंदी साहिब
बस ग़ज़ल हूँ मैं ए शाइर मेरे
कितने रंगो में है रौशन मिट्टी
ए ख़ुदा! मेरे, मुसव्विर मेरे
ये हरे लाल से परचम जिनके
मैं ख़ुदा हूँ ये हैं ताजिर मेरे
सतपाल ख़याल
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