तुझे ज़िंदगी यूँ बिताया है मैनें
कि पलकों से अंगार उठाया है मैनें
किसी से मुहब्बत , किसी से अदावत
कि हर एक रिश्ता , निभाया है मैनें
तेरी बेवफ़ाई बकाया है मुझ पर
गो क़र्ज़ा वफ़ा का चुकाया
है मैनें
अंधेरों से मुझको शिकायत नहीं है
उजाला नज़र में छुपाया है मैनें
ज़माने के ग़म हैं मेरी शायरी में
कि क़ूज़े में दरिया
उठाया है मैंने
हरिक मोड़ पर बस बदी ही खड़ी थी
बचा जितना दामन बचाया है मैंने
मैं तुम पे ये तोहमत धरूँ क्यों “ख़याल” अब
कि ख़ुद अपना दामन जलाया है मैंने
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