Friday 15 December 2023

आसमानों से उतारी धूप को- उड़ान *




आसमानों से उतारी धूप को
ले गये साए हमारी धूप को 

बुझ गया दिन शाम की इक फूँक से
पी गयी कालिख़ बेचारी धूप को

 
मौसमों ने की सियासत देखिए
खा गया कोहरा हमारी धूप को
 
छीन कर सूरज गरीबों से जनाब 
कर दिया किश्तों में जारी धूप को 


हर सुबह सूरज उठाकर चल पड़े
पीठ पर लादा है भारी धूप को
 
अपने हिस्से का उजाला बेच कर
हमने लौटाया उधारी धूप को
 
अपने सूरज खूंटियों पर टांग दो
पहनो मग़रिब की उतारी धूप को
 
बर्फ़ जब जमने लगी अहसास की
फिर बनाया हमनें आरी धूप को


 
 
 
 
 
 
 

No comments:

Post a Comment

उधर तुम हो , ख़ुशी है

  उधर तुम हो , ख़ुशी है इधर बस बेबसी है   ये कैसी रौशनी है अँधेरा ढो रही है   नहीं इक पल सुकूं का ये कोई ज़िंदगी है   मुसीबत है , बुला ले ये ...